“संत की चिंता विद्यार्थी की प्रगति”

आत्मीय विद्यामंदिर के प्राण समान श्री हरिप्रसाद
स्वामिजी हरिधाम में भक्तो से गोष्ठि कर उनकी समस्याओं का समाधान करने वलसाड़ जा
रहे थें। जाते हुए रास्ते में स्वामिजी बार-बार आत्मीय विद्यामंदिर के बच्चों को
याद कर रहे थे तथा अनायास ही निर्णय ले लिया कि वें बच्चों से मिलना चाहते है, वें
बच्चों के दर्शन करके ही अपना आगे का कार्यक्रम प्रारंभ करेंगें। अत: वें भविष्य
की सभा, मीटिंग एवं उद्घाटन को स्थगित कर सीधे कोली-भरथाणा रात को करीब 11:00 बजे
पहूँच गए।

दिनांक 28 दिसंबर 2013 शाम को अपनी
व्यस्तता के बावजूद आत्मीय विद्यामंदिर में पधारे और योगीबापा के स्वरूप बच्चों के
दर्शन की अभिलाषा स्कूल के आचार्य श्री से व्यक्त की तथा बच्चों से मिल कर उनके
साथ गोष्ठि की।
विद्यार्थियों के उत्तम प्राप्तांक
एवं श्रेष्ठ तथा सफ़ल जीवन हेतु कुछ नुस्खे भी दिए। जिसमें—

  1. जिसके मित्र अच्छे
    उनका जीवन उत्तम बनता है।
  2. विद्यार्थी जीवन में
    पढ़ाई ही महत्वपूर्ण हैं, अत: पढ़ाई करना, जहाँ समझ में ना आए उस पंक्ति को
    रेखांकित करना तथा बाद में उसकी समझ के लिए अपने मित्र या शिक्षक से पुछकर शंका का
    समाधान करना।
  3. पढ़ाई करते समय हमारी
    पास वाला विद्यार्थी भी क्या कर रहा है उस ओर भी ध्यान नहीं जाना चाहिए।
  4. यदि हम गुस्से न हो तो
    हमारी आंतरिक शक्ति बढ़ती है तथा हमारी याददाश्त में बढ़ोतरी होती है।
  5.  माँ, शिक्षक एवं गुरु
    की मर्यादा का कभी भी उलंधन नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार स्वामी हरिप्रसादजी ने विद्यार्थी के उत्तम परिणाम एवं संस्कारयुक्त
जीवन जीने का आशिर्वाद देकर विद्यार्थिओ के अच्छे अंक की कामना कर आत्मीय
विद्यामंदिर से करीब 7:45 बजे गमन किया।

हिन्दी शिक्षक

मुकेश जोशी