Std 8: वाद-विवाद—“कहाँ मस्ती करनी चाहिए तथा कहाँ मस्ती नहीं करनी चाहिए, तथा क्यों ?”

आज के समय में व्यक्ति का मन अधिक फैल रहा है। वह धीरे-धीरे अधिक चंचल होता जा रहा है। छात्रों की एकाग्रता कम हो रही है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पढ़ाई में एकाग्रता अत्यंत आवश्यक है। मन की एकाग्रता के लिए

सर्वप्रथम शरीर का स्थिर होना ज़रुरी है। एक संत ने कहा है—

“ तन स्थिर मन स्थिर”

अर्थात मन को स्थिर करना हो तो प्रथम तन यानि शरीर की चंचलता को स्थिर करना पड़ेगा और शरीर को स्थिर करने के लिए छात्रों को यह ज्ञान होना चाहिए कि हमें शरीर को स्थिर कयों करना है अर्थात उनको ज्ञान होना चाहिए कि मुझे ऐसा कयों करना चाहिए और ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए।

बच्चों को बेन्च पर बैठे-बैठे पैर हिलाने की आदत, चारों तरफ अकारण देखते रहने की आदत, कलम अर्थात पेन घुमाने की आदत आदि से मज़बूर हो गए होते हैं। यानि वें मस्ती करते रहते हैं।

यदि उसे पता हो कि कहाँ मस्ती करनी चाहिए और कहाँ मस्ती नहीं करनी चाहिए तथा क्यों? इस प्रश्न को वे भली-भाँति समझते हो तो वह छात्र पढ़ाई में जाग्रत रहता हैं।

इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु कक्षा 8वी ब में—

“कहाँ मस्ती करनी चाहिए तथा कहाँ मस्ती नहीं करनी चाहिए, तथा क्यों ?”—इस विषय पर दिनांक 17 जून से 23 जून 2012 के मध्य एक सप्ताह तक वाद-विवाद ( Debate ) का आयोजन किया गया।

संपूर्ण वर्ग के 32 बच्चों को पाँच जूथों में विभाजित किया गया। संपूर्ण प्रवृत्ति का आयोजन विषय शिक्षक श्री मुकेशभाई जोशी के मार्गदर्शन में गतिशील रहा।

वाद-विवाद के अंत में जो निष्कर्ष निकला उसके कुछ मुद्दे निम्नलिखित हैं—

1. वर्गखंड में मस्ती में नहीं करनी चाहिए, क्योकि उससे हमारी एकाग्रता में बाधा आती है तथा पढ़ाई पर असर पड़ता है।

2. प्रार्थना कक्ष में दैवत्व अर्थात भक्ति का वातावरण होता हैं, जहाँ पर हमें भगवान के आशिष प्राप्त होते हैं, अत: वहाँ शिस्त (अदब) अति आवश्यक है।

3. भोजनालय में यदि एकाग्रता से शांतिपूर्वक भोजन करते हैं तो पाचक रस का निर्माण अधिक होता है, जिससे हमारा भोजन सुपाच्य बनता है।

4. छात्रालय में अवकाश के समय(Free Time) तथा खेल के मैंदान में जब सिर्फ़ समय व्यतीत करने के उद्देश्य से खेल रहे हो, तब किसी को शारीरिक या मानसिक हानि न पहुँचे इस तरह शिस्तता का पालन करते हुए मस्ती कर सकते हैं।

इस प्रकार बच्चों ने आनंद लेते हुए ज्ञान प्राप्त किया तथा आचरण में लेने का निर्णय लिया।

 

-हिन्दी शिक्षक मुकेशभाई जोशी