‘दशहरा अर्थात कम से कम दस अवगुणों को हरना’

दिनांक 03, अक्तूबर 2014 को आत्मीय विद्यामंदिर के प्राटंगण में दशहरा का त्योहार मनाया गया। शाम सात बजे तक पाठशाला के सारे छात्र फूटबोल मैदान पर एकत्र हो चुके थे।
सुरज अपना कर्तव्य इस स्थान पर पूरा कर पृथ्वी के किसी और छोर पर गमन कर चुका था एवं लगभग 30 फीट ऊँचा हमारे अवगुण रूप रावण का पुतला चंद्र की चंद्रिका में चमक रहा था। आत्मीय विद्यामंदिर के हिन्दी शिक्षक श्री.मुकेशभाई जोशी ने दशहरा के उत्सव की महिमा बताते हुए कहा कि दशहरा अर्थात इस दिन हमें निश्चय करके कम से कम एक दुर्गुण की आहुति इस अग्नि में देनी है, जिससे आगे का विद्यार्थी-जीवन कार्यकलाप उत्तम छात्र एवं उत्तम नागरिक बनने की तरफ अग्रसर हो।
आत्मीय विद्यामंदिर की प्रणाली—किसी भी कार्य की शुरुआत प्रार्थना-पूजा से होनी चाहिए—इसका वहन करते हुए प्राचार्य श्री विजय सर, आचार्य श्री आशीष सर, महेन्द्र बापा, अर्जुन मामा, अन्य शिक्षक गण, हाउस मास्टर, दिदिज़, संपूर्ण छात्रगण ने भगवान की पूजा अर्चना की। तत्पश्चात स्पोर्ट्स शिक्षक श्री रितेश सर के सहयोग से आधुनिक रोकेट तीर का उपयोग कर रावण का दहन किया। छात्रों का मन उत्सव से आनंदित था।
सभी छात्र अपने अंवगुण एक चिट्ठी में लिखकर लाए थे। श्री रितेश सर ने सभी छात्रों से वो चिट्ठियाँ एकत्र की एवं उसे रावण के दहन में उस आहुति को छात्रों की और से समर्पित की।
यह उत्सव लगभग साँयकाल 7:30 बजे तक चला। पश्चात सभी छात्रों ने शिक्षकगण एवं प्राटंगण में उपस्थित सभी जन सहित भोजनालय की और प्रस्थान किया।
हिन्दी शिक्षक
मुकेशभाई जोशी