जीवन रूपी बगिया का माली – प्रभु !…
हे प्रभु !…
यह जीवन एक बगिया और तुम हो माली।
हम सब की डोर तुमने ही सँभाली।
जब कभी मुसीबतों की आँधी आई,
मेरी झुकती हुई डाली, तुमने ही सहलाई।।
जीवन रूपी बगिया में,
वात्सल्य की फुहार बहाकर,
प्रेमरूपी वर्षा का पानी बरसाकर।
हे प्रभु! तुमने यह पुष्प का चमन तो खिलाया।
मगर साथ में काँटों का सरताज क्यों पहनाया।।
फूलों की खुशबू से जीवन हुआ खुशहाल,
पर काँटों की चुभन ने तो, जीना किया दुशवार।।
हे प्रभु! अब तू ही बता अपना यह हाल मैं किसे सुनाउँ!
तेरे सिवा न किसी ओर को अपने इर्द-गिर्द पाऊँ।।
काँटों की चुभन को तू सहना सीखा दे।
इसकी चुभन सहकर भी खुश रहना सीखा दे।
सीखा दे वह सब कुछ जो कुछ तू हमसे चाहता।।
हे प्रभु! जीवन रूपी बगिया का जब तू माली बन बैठा,
तो अब जीवन के दुख-दर्द से हमारा क्या वासता।
हे प्रभु ! हे प्रभु ! हे प्रभु ! ….
– निहारिका