बानी से पहचानिए साम चोर की घात ।

अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह कई बात ॥

आत्मीय विद्यामंदिर की शनिवार की क्रिएटिव एसेंबली, इसका दर्पण है। यदि किसी भी व्यक्ति को अपने विद्या मंदिर की गतिविधियाँ  जाननी हो तो क्रिएटिव एसेंबली ही उचित माध्यम है; उनके सदस्यों की मानसिकता की प्रतिकृति हैं।

इसी संस्कार को लेकर दिनांक 5 अगस्त, शनिवार को सुहृदम हाउस के सदस्यों ने प्रस्तुत किया था:

વિશ્વાસ : આપણે મુક્યો છે. અથવા તો નથી મુક્યો

जिसमे दृढ़तापूर्ण बताया गया कि प्रभु पर भरोसा या विश्वास टुकड़ों में या मात्राओं में नहीं रखा जाता है। जैसे “मुझे प्रभु पर 60% या 70% अथवा इतना भरोसा है।” प्रभु भक्ति में पूर्ण भरोसा ही दृढ़ता प्रदान करता है एवं हमारा स्वार्थ एवं परमार्थ दोनों ही सफल कराता है।

इसी सन्देश को आत्मसात करवाने के लिए सुहृदम हाउस के सभी सदस्यों ने न दिन देखा, न देखी रात और अपनी-अपनी सेवा देकर इस  क्रिएटिव एसेम्बली को सफल बनाने के लिए सारे सहयोगी अभिनंदन के पात्र है।

सुहृदम हाउस की इस सभा “ વિશ્વાસ : આપણે મુક્યો છે. અથવા તો નથી મુક્યો” में श्री हरिप्रसाद स्वामीजी की, उनके  गुरूजी श्री योगीजी महाराज के प्रति अपार श्रद्धा एवं विश्वास के दर्शन करवाएँ,

इस संवाद को घटना की दृष्टि में तीन दृश्यों में बाँटा गया है:

  1. छात्रावास का दृश्य जिसमे हररोज रात को जिसने हमें सबकुछ दिया हे, उस भगवान का भजन कर के ही सोना।
  2. प्रभुदासजी द्वारा एवं उनके मित्र सुनिलभाई का अपने गुरूजी प्रति विश्वास दृढ करवाने का प्रसंग
  3. मंदिर के गद्दों की चद्दरों की 400 गठरियाँ ट्रेन के सामान्य डिब्बों में ले जाने का प्रसंग

श्री हरिप्रसाद स्वामीजी जब युवा थे,तबकी बात है। बचपन में उनका नाम प्रभुदासभाई था। तब उनका  एक दोस्त सुनिलभाई, जोकि हाल ही में उसकी कोलेज की पढाई ख़त्म हुई थी प्रभुदासभाई के कहने पर  दोस्त, श्री योगी महाराज से आशीर्वाद लेने आया। श्री योगी महाराज ने उसे ट्रक का व्यापार करने की सलाह एवं 18 ट्रकों का मालिक बनने का आशीर्वाद देते हैं। किन्तु  उसकी जन्म कुंडली में लिखा था कि उसे लोहे से बैर है, उसे लोहे से दूर रहना चाहिए अन्यथा उसे हानि या नुकसान हो सकता है। परन्तु दो-दो बार व्यापार में घाटा होने, इतना ही नहीं उनके  पिताजी के मना करने के बावजूद प्रभुदासभाई के अपने गुरु के प्रति अपार श्रद्धा एवं विश्वास से अभिभूत होकर कर ट्रक का व्यापार करने के लिए तैयार हो गए  एवम अंततः 18 ट्रकों के मालिक बन जाते है।

सुनिलभाई के दो-दो बार असफल होने के बावजूद प्रभुदासभाई की वजह से श्री योगीजी महाराज के वचनों में विश्वास और भरोसा करके ही व्यापार पुनः चालू करना कोई सामान्य बात नहीं थी, किन्तु फिरभी आज्ञा मानने के कारण आज वे 18 ट्रकों के मालिक बने।

दूसरा प्रसंग हे, जिसमें  चद्दरों की 400 गठरियाँ (बण्डल) ट्रेन के सामान्य डिब्बे में ले जाने की  श्री योगीजी महाराज की आज्ञा, जो कि पूर्णतया असंभव-सी थी,  उनके शिष्य श्री हरिप्रसाद जी ने संभव करके दिखाई तथापि  एक शिष्य के रूप में स्वयं आदर्श उदाहरण बनकर मानव जगत को संदेश दिया एवं दृढ करवाया कि गुरु के प्रति अपार श्रद्धा एवं विश्वास के द्वारा हम किसी भी कार्य को संभव कर सकते हैं।

ऐसे अद्भूत नाट्य को सफल बनाने के लिए सुह्रदम हाउस के सभी सभ्यों ने अथाह प्रयत्न कर सेवा दी है।

नाट्य की तैयारी के कुछ प्रसंग तो अपनी अमिट छाप छोड़ने के कारण अविस्मरणीय  बन गए है। जैसे कक्षा 8 वीं के नीरव रोनकभाई पटेल, जिसको नाट्य में उदघोषक की भूमिका प्राप्त हुई थी, उदघोषक की पूर्ण स्क्रिप्ट तैयार थी, उसने पूर्णतया याद भी कर ली थी एवं इतना ही नहीं, उसने वह स्क्रिप्ट सर्व समक्ष अभिव्यक्त कर के भी दिखा दी थी, किन्तु जब अभिनय के साथ अभिव्यक्ति करनी हो, तब वह अभिनय एवं वक्तव्य के मध्य सामंजस्य की कमी का कारण हड़बड़ा जाता एवं अपना वक्तव्य भूल जाता। इस सामंजस्य को न्याय देने हेतु नीरवभाई ने लगभग 30-40 बार अभिनय के साथ वक्तव्य का अभ्यास किया; उसने आँसू भी बहाये कि “मैं ठीक से कर नहीं कर पा रहा हूँ, किंतु अंत तक हार नहीं मानी। प्रयास करता रहा-करता रहा और अंततः उदघोषक के रूप में अपनी अभिनय कला का प्रदर्शन कर सफलता पूर्ण सेवा दी।

इतना ही नहीं, सुहृदम हाउस के कप्तान निरामयभाई अपनी अभिनय कला में तथापि संवाद में क्षति होने पर भी हमेशा गलती स्वीकार कर सुधार का यत्न करता एवं हार न मानते हुए, अपनी गलती पर भी, स्वयं पर मुस्कराते हुए प्रयत्न करते रहते।

सुहृदम हाउस के सभी सहयोगियों के विभिन्न प्रसंग है किन्तु मुख्य बात यह है कि आत्मीय विद्यामंदिर के हर सदस्य पर परम पूज्य हरिप्रसाद स्वामीजी के असीम आशीर्वाद बरस रहे हैं। छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी में सेवा का जोश एवं उत्साह का दर्शन प्रचुर मात्रा में हो रहा है। और यह सब सच्चे गुरु परम पूज्य हरिप्रसाद स्वामीजी के आशीर्वाद से ही संभव हो सका है।

Written by: Mukesh Sir