भारत संतों की पवित्र, धार्मिक एवं आध्यात्मिक भूमि है| यह दुनिया का एक मात्र ऐसा देश है जिसे माता का दर्जा मिला हुआ है| ‘भारत माता’ अर्थात जननी, जन्म भूमि| यहाँ कभी भी भौतिक सम्पति को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया है, बल्कि जो चरम एवं श्रेष्ठ हैं, जो आतंरिक मूल्य है – दया, करुणा, क्षमा, मानवता आदि को अधिक महत्त्व दिया गया हैं | यही तो व्यक्ति-व्यक्ति के बिच, पडौसी-पडौसी के बिच, दो समाजो के बिच, दो राज्यों, दो देशों के बिच मधुर एवं आत्मीय सम्बन्ध स्थापित कर एक सुखी, शांत, प्रगतिशील समाज एवं जीवन प्रणाली का निर्माण करते हैं| इन सब गुणों के आभाव में ही सारे संघर्ष पैदा होते हैं|

व्यक्ति-व्यक्ति के व्यवहार में एक-दूसरे पर गुस्सा होना आम बात मानी जाती है| दूसरों के अवगुणों को बढ़ा-चढ़ाकर उद्घाटित किया जाता है और उसके गुण भुला दिए जाते हैं| किसी की गलती होने पर उसे क्षमा करना तो हम भूल ही गए हैं| हमारी गलती होने पर हम माफ़ी की आशा रखते हैं, तो क्या अन्य की गलतियों को हमें माफ़ नहीं करना चाहिए? किन्तु हम सोचते हैं कि सिर्फ एक मेरे माफ़ी देने से क्या होगा, तो सोचिए एक से ही शुरुआत होती है और फिर कारवां उसका अनुसरण करने लगता हैं| हमारा एक प्रयत्न ही इसकी शुरुआत है|

Yogi Divine Society के संस्थापक परम पूज्य श्री हरिप्रसाद स्वामीजी समाजोत्थान और सभी सुखी हो इस भावना को लेकर सदैव जागरुक रहे हैं| उन्हीं की प्रेरणा से प्रेरित हो, इसी उद्देश्य को लेकर आत्मीय विद्यामंदिर के चारो हाउस में से सुन्दरम हाउस के सभी विद्यार्थी एवं शिक्षकों के अथक प्रयास से एक रंगमंच प्रस्तुत किया गया, जिसका नाम है:

Atmiyata is a One-Way Street… Be the First to Forgive and Forget.

जिसका मार्गदर्शन मुख्य रूप से श्री आशिष सर (उप आचार्य), प्रवर्तक सर एवं हॉउस के अन्य सभी शिक्षकों के साथ नृत्य अध्यापक और विद्यार्थियों के परिश्रम द्वारा सुन्दर रंगमंच एवं नृत्य जिसके बोल थे – “ઓ સ્વામી હરિ ! આપના આશિષ લઈને, અમે ચાલીએ ભુલકું રાહે તવ હાથને ગ્રહીને, સંગાથ લઈને”  द्वारा समाज को यह सन्देश पहुँचाया गया कि घृणा एवं नफ़रत का जवाब घृणा एवं नफ़रत से ही देते हैं तो मन-मुटाव अधिक होता हैं, संबध अधिक बिगड़ते हैं, परिस्थितियाँ अधिक संघर्षमय बन जाती हैं, किन्तु इससे विपरीत यदि घृणा एवं नफ़रत का जवाब प्रेम और माफ़ी से देते हैं तो सुमधुरता ही फैलती हैं|

इस रंगमंच में परम पूज्य स्वामीजी के पूर्वाश्रम जीवन का प्रसंग लिया गया कि उनके एक मित्र ने स्वामीजी को अपने घर भोजन का निमंत्रण देकर बुलाया, सभी को दूधपाक खिलाई गई किन्तु स्वामीजी के प्रति घृणा एवं नफ़रत के वश हो, स्वामीजी को सिर्फ कढ़ी दी गई किन्तु स्वामीजी के तटस्थ मन पर प्रेम और सिर्फ प्रेम ही झलकता रहा| अन्य मित्रों द्वारा कहने पर भी स्वामीजी के मन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा| न मान, ना ही अपमान का भाव| सिर्फ प्रेम और आत्मीयता के अलावा कोई भाव आया ही नहीं| स्वामीजी ने यही कहा कि “यदि कोई हमारे साथ अच्छा व्यवहार करें तभी हम उससे दोस्ती रखे ये सच्ची दोस्ती नहीं है|” प्रभुदासभाई के जीवन का ध्येय सिर्फ और सिर्फ आत्मीयता से जीना है| अन्य कोई आत्मीयता की राह पर चले या न चले, कोई आत्मीयता से जीए या न जीए, इसका विचार हमें नहीं करना हैं, हमें आत्मीयता से ही जीना हैं|

जब स्वामीजी के घर भोजन का कार्यक्रम बना, तब उनके सभी मित्र आएँ और वह मित्र भी आया जिसने सवामीजी के साथ दुर्व्यवहार कर दूधपाक की जगह कढ़ी खिलाई थी| उस समय स्वामीजी ने उस मित्र की भी सच्चे दिल से भक्ति की| स्वामीजी के ऐसे प्रेम-पूर्ण व्यवहार को देखकर स्वामीजी से नफरत करनेवाला मित्र शर्मिंदगी महसूस करने लगा, खाते-खाते उसका हाथ रूक गया, चेहरा रूआंसी हो गया, अंततः स्वामीजी ने स्वयं अपने हाथों से उसे खाना खिलाया| उस घृणा करनेवाले मित्र का जीवन ही बदल दिया| यह है प्रेम और क्षमा की ताकत|

इस आत्मीयता को आत्मीय विद्यामंदिर के बच्चों ने बड़ी अच्छी तरह समझाया| उन्होंने रंगमंच पर तीन चीजों का प्रदर्शन किया –

  1. दीवार जैसी सख्त बस्तु पर marker pen से लिख दिया जाए तो साफ़ करना बहुत कठिन हो जाता है|
  2. रेत पर लिखा हुआ, बड़ी आसानी से साफ़ किया जा सकता हैं |
  3. किन्तु यदि पानी पर कुछ भी negative लिखने का यत्न करें तो भी हम लिख नहीं पाएँगे|

यही सन्देश इस रंगमच द्वारा दिया गया कि हमें हमारे मन को पानी जैसा बनाना है, जब हम अपने मन को पानी जैसा बना लेंगे, तो समझना कि हमें आत्मीयता की दुनिया में entry मिल गई|

इस प्रकार सुन्दरम हाउस के सभी सदश्यों ने यह सन्देश दिया कि यदि कोई हमारा अपमान करें तो हम शायद उसे भूलने की कोशिश करे तो भी मन के किसी कोने में यह बात तो रह ही जाती है| यह बात तो सही है, किन्तु यह बात हमें हमेशा याद रखनी चाहिए कि पारस एक पत्थर है, जिसके स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है, उसी प्रकार संत परमात्मा के प्रकट रूप होते हैं| उनके सानिध्य एवं उनकी कृपा से वे हमें भी उनके जैसे पवित्र बना देते हैं| हमें सिर्फ उनके कहे अनुसार वर्तन करना हैं, उनकी आज्ञा का पालन करने की कोशिश करनी हैं| वे हमारा प्रयत्न देखकर हम पर कृपा बरसाते  हैं| अर्थात यदि हम forgive और let go से शुरुआत करते हैं तो बाकी सारे steps प्रभु हम से करवा लेते हैं | जब भी ऐसी कोई घटना घटे, जिसमे हमें बुरा लगे या गुस्सा आए तो हमें स्वामीजी का यह प्रसंग याद कर लेना चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए कि “हे महाराज, स्वामी, हमें भी आप जैसी आत्मीयता से जीवन जीना है, तो हमें बल, बुद्धि और शक्ति देना|”

इस प्रकार आत्मीय विद्यामंदिर स्कूल के सुन्दरम हाउस के सभी सदस्यों ने- अन्य कोई आत्मीयता की राह पर चले या न चले, कोई आत्मीयता से जीए या न जीए, हमें आत्मीयता से जीना चाहिए और यदि हमें प्रभु की आत्मीय दुनिया में entry लेनी हो तो हमें अपने मन को पानी के समान बनाना चाहिए, जिस पर किसी भी प्रकार के negative विचार को लिखना असंभव है| यह संदेश देकर रंगमंच का समापन किया |

मुकेशभाई जोशी (हिंदी शिक्षक)

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