रंग-बिरंगे मन के विविध रंग
आत्मीय विद्यामंदिर पाठशाला में दिनांक 31 मार्च 2012
से 01 अप्रेल 2012 तक कलाविद् (आर्ट शिक्षक)
श्री.मनीषभाई प्रजापति के मार्गदर्शन में आर्ट मेले का आयोजन किया गया था। यह रंगो की होली दो दिन तक चली,
जिसमें कक्षा 1 से 6 के बच्चों ने अपनी-अपनी कलाओं को ‘क्ले’, रंग, पृष्ठ (कागज़) आदि के माध्यम से प्रदर्शित किया।
सुबह 10:00 बजे से दुपहर 01:00 बजे तक एवं दुपहर भोजन के पश्चात 01 बजे से
03:00 तक इस आर्ट मेले का आयोजन किया गया ।
03:00 तक इस आर्ट मेले का आयोजन किया गया ।
इस आर्ट मेले को मार्गदर्शन देने के लिए पीडीलाईट (PIDILITE) संस्था के कलाविद् श्री
रंजीत ताड़वी एवं उनके सहायक सदस्यों को निमंत्रित किया गया।
इस आर्ट मेले में विविध प्रकार की प्रवृतियों का आयोजन किया गया।
उसमें सभी छात्रों को दो जूथ में विभाजित
किया गया।
उसमें सभी छात्रों को दो जूथ में विभाजित
किया गया।
प्रथम जूथ कक्षा 1 से 3 का
द्वितीय जूथ कक्षा 4 से 6 का
जिसमें प्रथम जूथ के लिए — My Theme, Sticker
Painting, Sand Paper Painting,
Stick Figures आदि
प्रवृत्तियों का निर्माण छात्रालय के प्रार्थना मंदिर में किया गया एवं द्वितीय जूथ के लिए— Paper Quelling Card,
Sand Art,Creative Lettering,
Shilpkar Mask आदि प्रवृत्तियों का निर्माण पाठशाला के प्राटंगण में
किया गया।
Painting, Sand Paper Painting,
Stick Figures आदि
प्रवृत्तियों का निर्माण छात्रालय के प्रार्थना मंदिर में किया गया एवं द्वितीय जूथ के लिए— Paper Quelling Card,
Sand Art,Creative Lettering,
Shilpkar Mask आदि प्रवृत्तियों का निर्माण पाठशाला के प्राटंगण में
किया गया।
इन दो दिन विविध
कला एवं रंगो से खिला हुआ आत्मीय विद्यामंदिर ऐसा दिख रहा था मानो एक सजीला इन्द्रधनुष
हो। जहाँ भी दृष्टि घुमाएँ वहाँ एक विचार आकार ले रहा था। हर तरफ़ बच्चे अपनी-आपनी
प्रतिभा को दृश्याकर करने में डूबे हुए थे। जगह-जगह दृश्यमान बच्चें ऐसे लग रहे
थें जैसे फूलवारी स्वयं आत्मीय विद्यामंदिर में आ
गई हो।
कला एवं रंगो से खिला हुआ आत्मीय विद्यामंदिर ऐसा दिख रहा था मानो एक सजीला इन्द्रधनुष
हो। जहाँ भी दृष्टि घुमाएँ वहाँ एक विचार आकार ले रहा था। हर तरफ़ बच्चे अपनी-आपनी
प्रतिभा को दृश्याकर करने में डूबे हुए थे। जगह-जगह दृश्यमान बच्चें ऐसे लग रहे
थें जैसे फूलवारी स्वयं आत्मीय विद्यामंदिर में आ
गई हो।
कोई क्ले से
तो कोई कागज़ से, कोई गोंद से तो कोई पींछी से, कोई शब्दों को सुंदर रूप में मरोड़
रहा था तो कोई आदी मानव की मुखाकृति को वाचा दे रहा था। दृश्य तो बस देखते ही बनता
था।
तो कोई कागज़ से, कोई गोंद से तो कोई पींछी से, कोई शब्दों को सुंदर रूप में मरोड़
रहा था तो कोई आदी मानव की मुखाकृति को वाचा दे रहा था। दृश्य तो बस देखते ही बनता
था।
आचार्य श्री,
शिक्षक श्री एवं दीदी भी इनसे अछूते नहीं रह पाए, वे भी बच्चों के साथ मिलकर बच्चे
बनकर सभी का उत्साह बढ़ा रहे थें। चारों
तरफ़ का वातावरण कला एवं आर्ट मेले के रंग में रंग गया था। हवा भी आर्ट मेले की
खुश्बू लिए आत्मीय विद्यामंदिर के प्राटंगण से भी दूर तक जाने को मचल रही थी।
बच्चें इतने खुश थें कि वे चाहते थें कि ये प्रवृतियाँ कभी खत्म न हो! किन्तु पुन:
आगमन के लिए कुछ समय तक इस प्रवृतियो
बाय-बाय कहने का समय आ गया था, इसलिए पूर्ण-विराम तो नहीं, किन्तु अर्ध विराम
लगाना आवश्यक था, अत: 1 अप्रेल 2012 को दुपहर 03:00 बजे इसकी पूर्णाहुति की गई।
शिक्षक श्री एवं दीदी भी इनसे अछूते नहीं रह पाए, वे भी बच्चों के साथ मिलकर बच्चे
बनकर सभी का उत्साह बढ़ा रहे थें। चारों
तरफ़ का वातावरण कला एवं आर्ट मेले के रंग में रंग गया था। हवा भी आर्ट मेले की
खुश्बू लिए आत्मीय विद्यामंदिर के प्राटंगण से भी दूर तक जाने को मचल रही थी।
बच्चें इतने खुश थें कि वे चाहते थें कि ये प्रवृतियाँ कभी खत्म न हो! किन्तु पुन:
आगमन के लिए कुछ समय तक इस प्रवृतियो
बाय-बाय कहने का समय आ गया था, इसलिए पूर्ण-विराम तो नहीं, किन्तु अर्ध विराम
लगाना आवश्यक था, अत: 1 अप्रेल 2012 को दुपहर 03:00 बजे इसकी पूर्णाहुति की गई।
रंग एवं कला की है ये दुनियाँ।
कभी आकृति
तो कभी विकृति है ये दुनियाँ।
तो कभी विकृति है ये दुनियाँ।
कभी हरी, कभी लाल तो कभी पीली है ये दुनियाँ।
रंग से भरी रंगीन है ये दुनियाँ,
क्योंकि रंगीले मन की है ये दुनियाँ।
धन्यवाद!
— मुकेश जोशी
(आत्मीय
विद्यामंदिर)
विद्यामंदिर)