“सम्मान”

सुना न हो सफ़र सत्कार का, आगे और ज़माना भी है।

सम्मान देते-देते भूल न जाना, एक दिन सम्मान हमे पाना भी है।।

“सम्मान”

ये कोइ उपहार नहीं जो किसी के हाथ में दिया जाए।
ना ये उधार लिया जाए, ना भाड़े पे चलाया जाए,
ना छिना जाए, ना चुराया जाए,
जब होठों से भी ना उगला जाए, तो आंखों से जताया जाए,
ये तो बस कुछ ऐसा है कि, साँसों में समाया जाए।।

देख वीरों के शौर्य को, जब इतने से भी दिल ना भरें तो,
जज़्बातों से तने सीनों पर पराक्रम पदक लगाए जाएँ।

गिनती के ये साढ़े तीन अक्षर, हर मांगें साक्षर और निरक्षर,
सब बीमार तीन अनार, सम्मान आदर और सत्कार।।

संप को सम्मान है,
सुह्रद को सत्कार है,
एकता को आदर है,
पर इन सबसे भी पहले आत्मा को सम्मान है,
क्योंकि आत्मा की सराहना, आत्मा की सेवा, और आत्मा का सम्मान,
बस! यही आत्मीयता का दूसरा नाम है,
बस! यही आत्मीयता का दूसरा नाम है।।

– पुष्पक एम. जोशी